Sitting Asanas in Hindi: यहाँ हम आज बैठकर किये जाने वाले आसनों के बारे में बात करेंगे। वैसे तो बैठकर किये जाने वाले आसनों के अनगिनत फायदे हैं और ध्यान तथा अध्यात्म के लिए ये आसन सर्वश्रेष्ठ माने गए हैं, फिर भी कुछ सावधानियां जरूरी है।
सावधानियां
- पैरों में कोई गंभीर समस्या होने पर यह आसन न करें।
- यदि रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्से या साइटिका में दर्द हो या घुटनों में कोई गंभीर समस्या हो तो इस आसन का अभ्यास न करें।
सुखासन (Sukhasana)
जिस आसन में सुखपूर्वक बैठा जाए, उसे सुखासन कहा गया है। सुखासन किसी विशेष आसन का प्रकार नहीं है। जो आसन लम्बे समय तक सुखपूर्वक किया जा सके, वही सुखासन है।
सुखासन विधि
- आसन पर सुखपूर्वक बैठें।
- बायें पैर को दाहिनी पिंडली के नीचे और दाहिने पैर का पंजा बायीं पिंडली के नीचे लगा कर बैठना सुखासन कहलाता है।
- मेरुदंड सीधा रखें।
- श्वास प्रश्वास सहज और दीर्घ रहेगा।
- वीतराग मुद्रा बनायें।
- बायीं हथेली नीचे दायीं हथेली ऊपर रहेगी। दोनों
- हाथ नाभि के पास गोद में स्थापित करें ।
सुखासन करने का समय
एक मिनट से धीरे-धीरे सुविधानुसार बढ़ाएँ ।
सुखासन करने का लाभ
- काम-विजय
- चित्त वृत्ति निरोध
- वीर्य-शुद्धि
- शक्ति का जागरण होता है
- सुषुम्ना में प्राण का संचार होने से व्यक्ति ऊर्ध्वरेता बनता है
स्वस्तिकासन (Swastikasana)
भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को शुभ चिह्न माना गया है। जैन परम्परा में अष्ट-मंगल में यह एक है। आसन करते समय इस की आकृति स्वस्तिक जैसी हो जाती है इसलिए इसे स्वस्तिकासन कहा है।
स्वस्तिकासन विधि
- आसन पर स्थिरता से दोनों पाँवों को मोड़कर बैठें।
- दाहिने पाँव के पंजे को बाँयें घुटने और जंघा के बीच इस प्रकार स्थापित करें कि पंजे का तलवा बायीं जंघा को स्पर्श करे।
- बाऐं पैर को उठाकर दाहिनी पिंडली और जंघा के बीच जमाएँ ।
- मेरुदंड सीधा रखें ।
- बाँये हाथ की हथेली को नाभि के नीचे रखें।
- फिर दाहिने हाथ को उसके ऊपर स्थापित करें।
- यह मुद्रा वीतराग (ब्रह्ममुद्रा) भी कहलाती है।
स्वस्तिकासन – समय और श्वास
- इस आसन में लंबे समय तक ठहरा जा सकता है।
- तीन घंटे एक आसन में बैठने से आसन-सिद्धि कहलाती है।
स्वस्तिकासन का स्वास्थ्य पर प्रभाव
- शरीर को स्थिर और सुखपूर्वक बैठाने के लिए सुखासन और स्वस्तिकासन उपयोगी आसन हैं।
- इन आसनों में किसी अवयव को कष्ट दिए बिना शरीर को दीर्घकाल तक स्थिर रखा जा सकता है।
- शरीर की स्थिरता, प्रसन्नता स्वास्थ्य का पहला लक्षण है।
- ध्यान के अवसर पर पैरों के सोने की शिकायत अक्सर शिविरार्थी करते हैं।
- पैरों में जो झनझनाहट अथवा असह्य स्थिति उत्पन्न होती है, सुखासन एवं स्वस्तिकासन में वह कम हो जाती है।
- शरीर का ढाँचा सीधा, सहज और सरल बन जाता है।
- स्वस्तिकासन एवं सुखासन से स्वास्थ्य सुन्दर बनता है ।
स्वस्तिकासन का ग्रन्थि तंत्र पर प्रभाव
सुखासन, स्वस्तिकासन ध्यान आसनों की श्रृंखला में हैं।
- इनसे विशेषत: गोनाड्स, एड्रीनल, प्रभावित होते हैं।
- उनके स्रावों से हमारे स्वभाव में परिवर्तन आता है।
- स्वस्तिकासन से वज्र नाड़ी विशेष प्रभावित होती है।
- जिससे ब्रह्मचर्य की आराधना में सहयोग मिलता है।
- भावना शान्त और निर्मल रहती है।
पद्मासन (Padmasana or lotus pose)
पद्मासन बैठकर किए जाने वाले आसनों में आता है। पद्मासन विशेषत: ध्यान, प्राणायाम के अभ्यास एवं अनुचिन्तन के लिए उपयोगी आसन है। साधना करने वाले साधक-साधिकाओं के लिए यह महत्वपूर्ण आसन है। सिद्धासन और पद्मासन ऐसे आसन है जिनसे मेरुदंड स्वत: सीधा रहता है। वस्तुत: यह आसन लगा कर बैठने से पैरों की आवृति कमल की पंखुड़ियों की तरह हो जाती है इसलिए इसे “पदम्’” यानि ‘कमल’ कहा गया है। कमल की आकृति सदृश होने से कुछ लोग इसे कमलासन भी कहते हैं। अर्ध-पद्मासन, बद्ध-पद्मासन, योगमुद्रा, उत्थित पद्मासन, तुलासन, कुक्कुटासन आदि अनेक आसन पद्मासन से सम्बद्ध है।
पद्मासन विधि
- आसन पर पैर फैलाकर बैठें।
- दायें पैर को घुटने से मोड़कर, बाँयी जंघा पर रखें।
- इसी तरह बॉयें पैर को घुटने से मोड़कर दायीं पिंडली के ऊपर से लाते हुए, दायींजंघा पर रखें।
- दोनों एड़ियां नाभि के पास इस प्रकार जंघाओं पर स्थापित होंगी कि एडियों का पिछला भाग नाभि के पास वाले भाग को स्पर्श करेगा।
- दोनों हाथों के अँगूठे और तर्जनी (अँगूठे के पास वाली अँगुली) के अग्र-भाग को मिलाएं।
- शेष तीनों अँगुलियां सीधी रहेंगी।
- शारीरिक स्थिति इस प्रकार बनाएं कि मेरुदंड गर्दन सीधी रेखा में रहें।
- इस आसन में वीतराग-मुद्रा (ब्रह्म-मुद्रा) का भी प्रयोग किया जा सकता है।
- उसकी विधि दोनों हथेलियां एक-दूसरे पर नाभि के पास गोद में स्थापित करें ।
- बाईं हथेली नीचे दायीं हथेली ऊपर अंगूठे एक दूसरे को स्पर्श करें ।
पद्मासन – समय और श्वास
- एक मिनट से आधा घंटा तक बढ़ाएं।
- प्रतिदिन एक मिनट बढ़ा कर आधा घंटा तक लाएँ।
- श्वास-प्रश्वास मंद एवं दीर्घ बनाए रखें।
पद्मासन का स्वास्थ्य पर प्रभाव
शरीर के संतुलित विकास की दृष्टि से यह आसन महत्त्वपूर्ण है। संतुलित शारीरिक विकास से जहाँ सुघड़ता एवं सौन्दर्य निखरता है वहीं शरीर को निरोग बनाए रखने में भी यह सहायक होता है। ध्यानासन के रूप में पद्मासन अधिक चर्चित है। तांत्रिक दृष्टि से विचार करें तो पद्मासन में शरीर की आकृति त्रिभुजाकार बन जाती है। शरीर का निचला फैला हुआ भाग त्रिभुज की आधार रेखा व घुटनों से लेकर सिर तक ऊपर जाती हुई हाथों के समानान्तर सीधी रेखाएं मिलकर त्रिभुज बनाती है, तांत्रिक परम्परा में त्रिभुज एक शक्तिशाली प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इस आकार से जो रश्मियाँ विकिरित होती हैं वे व्यक्ति की आन्तरिक ऊर्जा को बढ़ाती है और ध्यान में सहायक बनती हैं, जिससे प्राण को ऊर्ध्वगामी होने में सहयोग मिलता है।
पद्मासन और सिद्धासन को तीन घंटे तक साध लिया जाए तो साधक सिद्धि तक पहुँच जाता है। पद्मासन मे श्वास-प्रश्वास को संतुलित करने से संवेगों और आवेगों पर नियंत्रण होता है। साथल, घुटने तथा कटि प्रदेश में शुद्ध रक्त का संचार होता है। साथल और वहां पर चढ़ी अनावश्यक चर्बी छटने लगती है। शरीर सुडौल हो जाता है। मन व चित्त प्रसन्न होता है।
पद्मासन का ग्रन्थियों पर प्रभाव
- पद्मासन से विशेष रूप से एड्रीनल व गोनाड्स ग्रन्थियाँ प्रभावित होती हैं ।
- गोनाड्स द्वारा स्रावित हॉर्मोन्स व्यक्ति की कामनाओं के जागरण में सहयोग प्रदान करते हैं।
- पद्मासन गोनाड्स के हार्मोन्स का संतुलन स्थापित करता है, इससे वासना- -मुक्ति में सहायता मिलती है।
- साथ ही इस आसन से रक्त-शोधन होता है ।
- व्यवहार पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- एड्रीनल पर पड़ने वाले प्रभाव से आवेश व आवेगों पर नियन्त्रण होता है।
पद्मासन ध्यानासन है। इसमें प्राणायाम व ध्यान का अभ्यास अच्छे ढंग से निष्पादित होता है। जप व धारणा की स्थिति अच्छी बनती है। कॉस्मिक रेज पद्मासन में आत्मसात होती है। इससे शारीरिक मानसिक व भावनात्मक निर्मलता बढ़ती है। इसके दीर्घकालीन अभ्यास से शक्ति केन्द्र से ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे अपान-शुद्धि होती है। व्यक्ति आध्यात्मिक लक्ष्य प्राप्त करता है।
पद्मासन लाभ
- एकाग्रता बढ़ती है।
- ब्रह्मचर्य की दृष्टि से उपयोगी है।
- पद्मासन प्राण के प्रवाह को उर्ध्वगामी बनाता है।
- जांघ व कटि-भाग सुदृढ बनते हैं।
- सहिष्णुता का विकास होता है।
- संतुलन सधता है और चंचलता कम होती है।
योगमुद्रासन (Yogmudrasana)
विधि
पद्मासन में सीधे ठहरें। बाँये हाथ की मुट्टी को बाँधकर शक्ति केन्द्र- रीढ़ की मूल में स्थापित करें। दाहिने हाथ से बाँये हाथ की कलाई (मणिबंध) पकड़ें। श्वास का रेचन करते हुए शरीर को आगे झुका कर ललाट से भूमि का स्पर्श करें। कलाई पकड़े, दोनों हाथों को ऊपर उठायें, जितना सीधा कर सकते हैं, सीधा करें। श्वास, गति सहज रहेगी। श्वास भरते हुए शरीर व गर्दन को सीधा करें। हाथ को मूल में स्थापित करें। इसी क्रिया को कलाई बदल कर दोहराएँ।
योगमुद्रासन – समय और श्वास
एक मिनट में पांच मिनट तक। निर्विकार साधना की दृष्टि से आधे घण्टे तक भी किया जा सकता है, लेकिन प्रति सप्ताह दो-दो मिनट बढ़ा कर आधे घंटे तक ले जाएँ।
योगमुद्रासन का ग्रंथि तंत्र पर प्रभाव
इस आसन से गोनाड्स पर सीधा प्रभाव पड़ने से कामवृत्ति पर नियंत्रण होता है। पिनियल पर दबाव पड़ने से मानसिक तनाव कम होता है। एड्रीनल पर दबाव पड़ने से मानसिक तनाव कम होता है और बुरे भावों का शमन होता है।
योगमुद्रासन का स्वास्थ्य पर प्रभाव
योगमुद्रासन पेट और उससे संबंधित शरीर के अन्य भागों की मालिश तथा कोष्ठबद्धता, अपच व अन्य उदर संबंधी रोगों को दूर करने के लिए बहुत ही अच्छा आसन है। तेजस् केन्द्र जो कि रीढ़ की हड्डी में नाभि के ठीक पीछे की ओर स्थित है, इसको जागृत करने के लिए यह शक्तिशाली आसन है। यह केन्द्र प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर छिपी हुई शक्ति का एक प्रमुख केन्द्र है।
योगमुद्रासन लाभ
पद्मासन के लाभ इसमें सहज प्राप्य है । उदर दोष की निवृत्ति, मेरुदंड की स्वस्थता, स्मरण शक्ति का विकास तथा मुख एवं मस्तिष्क के स्नायुओं को शक्ति प्रदान करता है
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